कभी लगता था की जिंदगी हैं राहें
जो घूमती फिरती, चलती रुकती
एक दिन अपनो की पहाहो में ले जाएँगी
कभी लगता था की जिंदगी है नदी
जो पत्थरों से टकराते हुए, पहाड़ो को चीरती
एक दिन शांत समुंदर में मिला देंगी
कभी लगता था की जिंदगी है हवा
जो पतंगो की डोर में उलझती सुलझती
एक दिन सपनो को आसमान का मुकाम देंगी
आज लगता हैं की बूँदें है जिंदगी
छोटे छोटे टुकड़ों में मिलती है
मिले के भी प्यासा ही रखती है
कुछ बिखरे लम्हों से बनी
आखों की बूँदों से सनी
हाथों में आके भी, खोई सी जिंदगी