Friday, September 19, 2008

क्यो लाशों की इतनी खबरें आती हैं अखबारों में!!

क्यो लाशों की इतनी खबरें आती हैं अखबारों में!!


बम अब शहर शहर
मिलते, रोज रोज गिरजे जलते हैं!
गांधी की इस भूमि में अब डर पलता है चौबारों में!!
क्यो
लाशों की इतनी खबरें आती हैं अखबारों में!!


चांदी के कुछ खोते सिक्के, जमीन का मनहूस सा टुकडा!
सब ज्यादा कीमत रखते हैं! जीवन से, इंसानों से!!
क्यो
लाशों की इतनी खबरें आती हैं अखबारों में!!


बाद-सूखा, बारिश-ठड़ सब जन ले के जाते हैं!
जाने
क्यो
मौसम के मेले लगते हैं शमशानों में!!
क्यो
लाशों की इतनी खबरें आती हैं अखबारों में!!


बस-गाड़ियों के नीचे कैसे लोग कुचले जाते हैं!
सड़के किस ने भर दी हैं ऐसे बेदर्द हैवानो से!!
क्यो
लाशों की इतनी खबरें आती हैं अखबारों में!!


जो पीछे रह जाते हैं,
इन्साफ के लिए थाने-कचहरी में गिदागीडाते हैं!
खंज्रर से ज्यादा छलनी होते है दिल, क़ानून के दरवाजों से!!
क्यो लाशों की इतनी खबरें आती हैं अखबारों में!!